Contect from manishmali1704@gmail.com

Name

Email *

Message *

Tuesday, 20 April 2021

मलिक मुहम्मद जायसी

 •जीवनकाल:- 1492-1542 ईस्वी 

•जन्म स्थल:- जायस (अमेठी, उत्तरप्रदेश)

•गुरु:- शेख मोहिदी, शेख बुरहान, सैय्यद अहमद

•सूफ़ी संप्रदाय:- जायसी किस सूफ़ी संप्रदाय से संबंधित है, इस संदर्भ में निम्न दो मत मिलते हैं:-

•चिश्तिया संप्रदाय:- रामचंद्र शुक्ल एवं परशुराम चतुर्वेदी 

•मेहदवी संप्रदाय:- रामपूजन तिवारी एवं रामखेलावन पाण्डेय 

•रचनाएँ:- 

•आखिरीकलाम:- 1528 ईस्वी में बाबर के समय रचित। रोजे क़यामत (प्रलय के दिन) का वर्णन। बाबर की प्रशंसा की गई।

•अखरावट:- वर्णमाला के अक्षरों के अनुसार सूफ़ी सिद्धांत चौपाई छंद में अभिव्यक्त।

•कहरनामा:- कहरवा शैली में आध्यात्मिक विवाह का वर्णन।

•मसलानामा:- ईश्वर भक्ति एवं प्रेम निवेदन संबंधित ग्रंथ 

•चित्ररेखा:-लघु प्रेमाख्यान काव्य। चंद्रपुर की राजकुमारी चंद्ररेखा का वर्णन। मोहम्मद साहब एवं उनके चार मित्रों का वर्णन भी इसमें मिलता है।

•कान्हावत

•पद्मावत:-

•रचनावर्ष:- 1540 ईस्वी 

• 57 खण्डों में विभक्त महाकाव्य

•भाषा- ठेठ अवधी  

•इस महाकाव्य में चित्तौड़ के राजा रत्नसेन एवं सिंहलद्वीप की राजकुमारी पद्मावती के प्रेम विवाह एवं विवाहोत्तर जीवन का मार्मिकता से वर्णन किया गया है। साथ ही रत्नसेन की पहली पत्नी नागमति के विरह का कवि ने अद्वितीय वर्णन किया है। इतिहासकारों ने इसके पूर्वार्ध भाग को कल्पना प्रसूत एवं उत्तरार्ध भाग को ऐतिहासिक माना है।

•हरदेव बाहरी ने पद्मावत का मूल कथा स्रोत प्राकृत रचना 'रत्नशेखर कथा' को बताया है।

•पद्मावत को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने 'हिन्दी का प्रथम बड़ा महाकाव्य', समासोक्ति एवं 'भक्तिकाल का वेदवाक्य' कहा तो नगेन्द्र ने 'रोमांचक शैली का कथा काव्य' कहा।

•पद्मावत 'रुपक काव्य'(Allegory) भी है,इसके विभिन्न पात्रों के दार्शनिक प्रतीक भी प्राप्त होते है। यथा:'

तन चितउर मन राजा कीन्हा।हिय सिंघल बुद्धि पद्मिनी चीन्हा

गुरु सुआ जेइ पंथ दिखावा।बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा

नागमति यह दुनिया धंधा। बांचा सोइ न एहिचित बंधा

राघवदूत सोई सैतानमाया अलाउद्दी सुलतानू।।

रामचंद्र शुक्ल ने इसमें फेरबदल कर रत्नसेन को आत्मा एवं पद्मावती को परमात्मा बताया है।

•पद्मावत का बांग्ला भाषा में अनुवाद 1650 ईस्वी में अराकान के वजीर मगन ठाकुर ने आलोउजाला नामक कवि से करवाया।

•जायसी पर रचित आलोचना ग्रंथ:-

• जायसी ग्रंथावली(1924):- रामचंद्र शुक्ल 

•जायसी(1983):- विजयदेवनारायण साही

•जायसी:एक नई दृष्टि :- डाॅ.रघुवंश 

•जायसी की प्रतिनिधि पंक्तियाँ:-

•तीन लोक चौदह खंड,सबै परि मोहि सूझि

•मुहम्मद बाजी प्रेम की,ज्यौं भावैं त्यौं खेल

•मानुष प्रेम भयहुँ बैकुण्ठी,नांहि ते कहा छार भरी मुट्ठी 

•पद्मावत चाहत ऋतु पाई,गगन सोहावत भूमि सोहाई।

• चढ़ा आषाढ़ गगन घन गाजा।साज विरह दुंद दल बाजा।

•मनसरोदक बरनौ कहा। भरा समुंद अस अति अवगाही।

•रवि ससि नखत दिपति ओहि जोती।

•नौ पौरी तेहि गढ़ मंझियारा। ओ तहं फिरहिं पांच कोटवारा

•भंवर केस वह मालती रानी। विसहर तुरहिं लेहिं अरघानी

•नयन जो देखा कंवल भा,निरमल नीर सरीर

•नव पौरी पर दसम दुआरा।तेहि पर बाज राज घटियारा।

•पिउ से कहेउ संदेसड़ा,हे भौरा,हे काग।

•प्रमुख कथन:-

•रामचंद्र शुक्ल:- एक ही गुप्त तार मनुष्य मात्र के ह्रदयों से होता हुआ गया है जिसे छूते ही मनुष्य सारे बाहरी रूप रंग के भेदों की ओर से ध्यान हटा एकत्व का अनुभव करने लगता है।

•रामचंद्र शुक्ल:- नागमति का विरह वर्णन हिन्दी साहित्य की अद्वितीय वस्तु है।

•रामचंद्र शुक्ल:- अपनी भावुकता का बड़ा भारी परिचय जायसी ने इस बात में दिया है कि रानी नागमति विरहदशा में अपना रानीपन बिल्कुल भूल जाती है और अपने को केवल साधारण नारी के रूप में देखती है। इसी सामान्य स्वाभाविक वृत्ति के बल पर उसके विरह वाक्य छोटे-बड़े सबके ह्रदय को समान रूप में स्पर्श करते है।

•रामचंद्र शुक्ल:- जायसी का विरह वर्णन कहीं-कहीं अत्युक्तिपूर्ण होने पर भी मजाक की हद तक नहीं पहुंचने पाया है, उसमें गांभीर्य बना हुआ है।

•रामचंद्र शुक्ल:- हिन्दी के कवियों में यदि कहीं रमणीय,सुन्दर अद्वैती रहस्यवाद हैं तो वह जायसी का है जिनकी भावुकता बहुत ही उच्च कोटि की है।

• रामचंद्र शुक्ल:- जायसी की भाषा बहुत ही मधुर है, पर उसका माधुर्य निराला है। वह माधुर्य भाषा का माधुर्य है, संस्कृत का माधुर्य नहीं।

• रामचंद्र शुक्ल:- जायसी की भाषा देशी सांचे में ढली हुई, हिन्दुओं के घरेलू भाव से भरी हुई बहुत ही मधुर और ह्रदय ग्राही है।

•विजयदेवनारायण साही:- जायसी में अपने स्वाधीन चिंतन और प्रखर बौद्धिक चेतना के  लक्षण मिलते है जो गद्दियों और सिलसिलों की मठी या सरकारी नीतियों से अलग है। इस अर्थ में जायसी यदि सूफ़ी है तो कुजात सूफ़ी है।

•विजयदेवनारायण साही:- जायसी के पद्मावत में न सिर्फ एक विशेष जीवन दृष्टि है,बल्कि एक स्पष्ट सामाजिक सांस्कृतिक समन्वय भी है।

•विजयदेवनारायण साही:- जायसी का प्रस्थान बिंदु न ईश्वर है न कोई नया आध्यात्म। उनकी चिंता का मुख्य ध्येय मनुष्य हैं।

•विजयदेवनारायण साही:- पद्मावत जिन्दगी का एक दर्शन नहीं, जिन्दगी है। वह जायसी का तसव्वुफ़ नहीं, जाससी की कविता है।

•विजयदेवनारायण साही:- पद्मावत का पूर्वार्ध भाग 'यूटोपिया' हैं।

@ मनीष माली द्वारा संपादित

14 comments:

  1. शानदार स्त्रोत

    परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण👍👍👍

    ReplyDelete
  2. बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य
    धन्यवाद सर 🙏🌸

    ReplyDelete
  3. महत्त्वपूर्ण संकलन🙏

    ReplyDelete
  4. धन्यवाद जी सर जी

    ReplyDelete
  5. बहुत बहुत आभार sir🙏🙏

    ReplyDelete
  6. बहुत ही उत्कृष्ट और महत्वपूर्ण प्रश्नों का संकलन ।
    परीक्षा में हम विस्तृत महासागर रूपी विषय को कुएं के रूप में परिणित करते हैं ताकि मस्तिष्क की गहराई में और संक्षेप में बहुत सी महत्वपूर्ण बातें हमे याद हो जाये तथ्यों सहित ।
    इस दृष्टिकोण से यह विषय आपने बहुत ही उत्तम तरीके से तैयार किया है संक्षेप और गहराई का सामंजस्य बेहतरीन ।।
    कोटिशः धन्यवाद सर आपको 🙏🏻🙏🏻

    ReplyDelete
  7. बहुत बढ़िया,धन्यवाद सर्

    ReplyDelete
  8. अति सराहनीय लेख,

    ReplyDelete
  9. बहुत बढ़िया संकलन। धन्यवाद सर

    ReplyDelete
  10. Bahut acha thanku sir 🌸🌻

    ReplyDelete