Contect from manishmali1704@gmail.com

Name

Email *

Message *

Wednesday, 14 April 2021

विद्यापति

 •रचनाकाल:-1350ईस्वी- 1460 ईस्वी के मध्य 

•जन्म स्थल:-ग्राम विसपी,जिला दरभंगा(बिहार)

•पिता:-गणपति 

•गुरु:-पण्डित हरिमिश्र

• आश्रयदाता:-तिरहुत के राजा गणेश्वर,कीर्तिसिंह एवं शिवसिंह 

•उपाधियां:-

•स्वयं को 'खेलनकवि' कहा।

• बच्चन सिंह- जातिय कवि, अपरुप का कवि

•हजारीप्रसाद द्विवेदी:- श्रृंगार रस का सिद्ध वाक् कवि

•अन्य-मैथिली कोकिल,अभिनवजयदेव,नवकविशेखर, कविकण्ठहार, दशावधान,पंचानन आदि।

•रचनाएँ:-संस्कृत, अवहट्ट एवं मैथिली भाषा में 

•संस्कृत भाषा में:- शैवसर्वस्वसार, गंगावाक्यावली, दुर्गाभक्ति तरंगिणी, भूपरिक्रमा, दानवाक्यावली, पुरूष परीक्षा,  लिखनावली, विभागसार, गयपत्तलकवर्णकृत्य।

•अवहट्ट भाषा में:- कीर्तिलता(1403 ईस्वी), कीर्तिपताका(1403 ईस्वी, अप्राप्य रचना)

•मैथिली भाषा में:- पदावली (1380 ईस्वी)

• गोरक्षविजय नाटक:- विद्यापति द्वारा रचित एक अंक का नाटक जिसके संवाद संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में तथा गीत मैथिली भाषा में रचित है।

•note:- विद्यापति की रचना कीर्तिलता तिरहुत के राजा कीर्तिसिंह एवं शिवसिंह का प्रशस्तिपरक काव्य हैं। इस रचना को विद्यापति ने पुरुष कहाणी कहा है तथा इस रचना को हजारीप्रसाद द्विवेदी ने 'भृंग-भृंगी संवाद' की संज्ञा दी है।

•विद्यापति-श्रृंगारी,भक्त या रहस्यवादी ?:- विद्यापति को मूलतः श्रृंगारी कवि माना जाता है, विभिन्न मत-

•श्रृंगारी:-रामचंद्र शुक्ल, हरप्रसाद शास्त्री, रामकुमार वर्मा,  रामवृक्ष बेनीपुरी,सुभद्रा झा आदि।

•भक्त:- बाबू ब्रजनंदनसहाय,श्यामसुंदर दास, हजारीप्रसाद द्विवेदी।

•रहस्यवादी:- जार्ज ग्रियर्सन, जनार्दन मिश्र, नागेन्द्रनाथ गुप्त 

•विशेष:-

•हजारीप्रसाद द्विवेदी ने विद्यापति को भक्त कवि माना लेकिन जब उनके काव्य पक्ष पर वे टिप्पणी करते हैं तो उन्हें 'श्रृंगार रस का सिद्ध वाक् कवि' मानते हैं।

•विद्यापति ने सर्वप्रथम हिन्दी साहित्य में 'कृष्ण' को काव्य का विषय बनाया।

•सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने पदावली के श्रृंगारीक पदों की मादकता को 'नागिन की लहर' कहा।

•पदावली में भगवान शिव की भक्ति में रचे गये पद जो नृत्य के साथ गाये जाते है, 'नचारी' कहलाते हैं।

•रामचंद्र शुक्ल:- आध्यात्मिक रंग के चश्मे आजकल बहुत सस्ते हो गये हैं, उन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने 'गीतगोविंद' में आध्यात्मिक संकेत बताया है,वैसे ही विद्यापति के इन पदों में भी।

•रामचंद्र शुक्ल:- जयदेव की दिव्यवाणी  की स्निग्धधारा जो कि काल की कठोरता में दब गयी थीं, अवकाश पाते ही मिथिला की अमराइयों में प्रकट होकर विद्यापति के कोकिल कंठ से फूट पड़ी।

•शान्तिस्वरूप गुप्त:- विद्यापति पदावली से साहित्य के प्रांगण में जिस अभिनव बसंत की स्थापना की है, उसके सुख-सौरभ से आज भी पाठक मुग्ध है,क्योंकि उनके गीतों में जो संगीत धारा प्रवाहित होती है वह अपनी लय सुर ताल से पाठक या श्रोता को गदगद कर देती है।

•श्यामसुंदर दास:-हिन्दी में वैष्णव साहित्य के प्रथम कवि प्रसिद्ध मैथिली कोकिल विद्यापति हुए। उनकी रचनाएं राधा एवं कृष्ण के पवित्र प्रेम से ओत-प्रोत हैं।

•रामकुमार वर्मा:- राधा का प्रेम भौतिक और वासनामय प्रेम है। आनंद ही उसका उद्देश्य है और सौन्दर्य ही उसका कार्य कलाप।

•रामकुमार वर्मा:- वयः संधि में ईश्वर से संधि कहां,सद्यस्नाता में ईश्वर से नाता कहां और अभिसार में भक्ति का सार कहां?"

•बच्चन सिंह:- विद्यापति का प्रेम न तो रोमेंटिकों की तरह वायवीय है और न भक्तों की तरह दिव्य। वे अपरुप के कवि है।

•बच्चन सिंह:- मैथिली की मिठास, लोकधुनों का समावेशन, तन्मयीभूत करने की अपनी क्षमता के कारण पदावली आज भी लोकप्रिय है और कल भी रहेगी।

•प्रमुख पंक्तियाँ:-

•देसिल बअना सब जन मिट्ठा। (कीर्तिलता)

•जय जय भैरवी असुर भयाउनि, पसुपति भामिनि माया।

•नंदक नंदन कदम्बक तरूतर,धिरे-धिरे मुरलि बजाव।

•सहज सुन्दर गौर कलेवर पीन पयोधर सिरी।

•खने-खने नयन कोन अनुसरई,खने-खने बसन धूलि तनु भरई

• पीन पयोधर दूबरि गता,मेरु उपजल कनक लता।

• जहां जहां पद जुग धरई,तहिं तहिं सरोरूह झरई।

• नब वृंदावन नब-नब तरुगन,नब-नब बिकसित फूल।

•सरस बसंत समय भल पाओलि,दखिन पबन बहु धीरे।

•सैसब जौबन दुहु मिलि गेल।

• सखि हे, पूछसि अनुभब मोय।

7 comments: