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Thursday, 1 August 2019

नाथ साहित्य

                                    नाथ साहित्य 


नाथ शब्द से आशय हैं-जो मुक्ति प्रदान करें। नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक गुरु गोरखनाथ है। जालंधरनाथ(आदिनाथ-शिव), मछंदरनाथ,चर्पटीनाथ,भीमनाथ,भर्तृहरि, गोपीनाथ आदि अन्य प्रमुख नाथ है। नाथ संप्रदाय की मूल मान्यता-मुक्ति के लिए ऐन्द्रिक भोग नहीं बल्कि इन्द्रियों का नियमन,निग्रह या संयम की आवश्यकता है। नाथ संप्रदाय ने सिद्धों के प्रवृत्ति मार्ग के विरूद्ध निवृत्ति मार्ग की स्थापना की। हठयोग नाथ साधना का महत्वपूर्ण उपादान है, जिसमें योग की साधना के माध्यम से 'ह' अर्थात् 'सूर्य' तथा 'ठ' अर्थात् 'चन्द्रमा' का मिलन अर्थात् इन्द्रियों के स्वभाव को पलट देना हठयोग है। इनकी मान्यता के अनुरूप-
              * 'जोई जोई पिण्डे,सोई ब्रह्मांडे'
अर्थात् व्यक्ति के भीतर जो कुडंलिनी होती है,वह ब्रह्मांड में व्याप्त महाकुंडलिनी का ही लघु रूप है या यह कहे की जीव ब्रह्म का ही अंश है।नाथ साहित्य में कर्मकांड और ब्राह्मणवाद के प्रति उपेक्षा का भाव है। इनका आक्रोश बाह्याडम्बर और दुराचार के प्रति स्पष्ट है। जाति एवं वर्णव्यवस्था के प्रति इनका विरोध है। नाथ संप्रदाय में बुद्धिजन्य ज्ञान की अपेक्षा अनुभव प्राप्त ज्ञान को महत्व दिया गया है। सिद्धों के नारी भोग का विरोध कर नाथों संप्रदाय में नारी मुक्ति का प्रस्ताव है लेकिन गृहस्थ जीवन के प्रति विद्रोह एवं नारी को अपनी साधना में बाधक मानकर स्वयं नारी का तिरस्कार करना नाथ साहित्य की सीमा है-
            *नौ लख पातरि आगे नाचे,पीछे सहज अखाड़ा।
             ऐसो मन ले जोगी खेलै,थब अंतरि बसै भंडारा।।
नाथ संप्रदाय में गुरु को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया है। गुरु से प्राप्त ज्ञान को महत्व दिया गया। चर्पटीनाथ लिखते हैं कि -
          * जाणि के अजाणि होय बात तूं ले पछाणि।
            चेले हो दूआ लाभ होइगा गुरू होइओ आणि।।
नाथ साहित्य का रूप मुक्तक काव्य है। नाथ साहित्य की भाषा अपभ्रंश युक्त पुरानी हिन्दी है जिसमें ब्रज,अवधी तथा पंजाबी के शब्द भी शामिल है। नाथ संप्रदाय में संधा भाषा का प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में हुआ है- 
                    * नाथ बोले अमृतवाणी,
                       बरिसैगी कंबली भीजैगा पाणी।
पंडित राहुल साांकृत्यायन ने नाथ पंथ को सिद्धों की परंपरा का विकसित रूप माना है। नाथ पंथ का चरमोत्कर्षकाल 12वीं सदी से 14वीं तक माना जाता है। नाथ संप्रदाय के आदिनाथ को स्वयं शिव माना जाता है। नाथ संप्रदाय में गुरु गोरखनाथ का विशिष्ट एवं सर्वोपरि स्थान है। गुरु गोरखनाथ का समय राहुल साांकृत्यायन ने 845 ईस्वी, हजारी प्रसाद द्विवेदी ने 9वीं शताब्दी,पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने 11वीं शताब्दी तो रामचंद्र शुक्ल एवं रामकुमार वर्मा ने 13वीं शताब्दी माना है। गुरु गोरखनाथ की प्रमुख रचनाएँ सबदी,नरवैबोध,प्राणसंकली एवं आत्मबोध हैं, गुरु गोरखनाथ की संस्कृत रचना 'सिद्ध सिद्धांत पद्धति' नाथ दर्शन की प्रतिष्ठापक है। गुरु गोरखनाथ की अन्य संस्कृत कृतियां विवेक मार्तण्ड, शक्तिसंगमतंत्र,निरंजन पुराण एवं विराट पुराण है। गुरु गोरखनाथ की रचनाओं का प्रमाणिक संकलन 1942 ईस्वी में पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने 'गोरखबानी' नाम से हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से प्रकाशित करवाया। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने 'नाथ सिद्ध की बानिया' पुस्तक का संपादन नागरी प्रचारिणी सभा, काशी से प्रकाशित करवाया। नाथ साहित्य की हिन्दी साहित्य के संत काव्य में गृहस्थ अनादर, गुरु सेवा, रूढियों के खंडन,वर्णव्यवस्था पर चोट, कुरीतियों का विरोध आदि महत्वपूर्ण देन है। 

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