•रचियता:- चंदवरदाई (लाहौर के भट्ट जाति के जगात गोत्र में जन्म)
•समय:- 1225-1249 विक्रम संवत् (1168-1192 ईस्वी)
•पृथ्वीराज के राजकवि जयानक ने 'पृथ्वीराज विजय' में चंद का नाम 'पृथ्वीभट्ट' तो गौरीशंकर हीरानंद ओझा ने चंद्रक कवि बताया।
•रामचंद्र शुक्ल के अनुसार चंद को जालंधरी देवी का इष्ट था।
•सर्वप्रथम जानकारी:-कर्नल जेम्स टॉड ने अपने ग्रंथ 'एनल्स एण्ड एक्टिविटीज ऑफ राजस्थान'(1839 ईस्वी) में प्रदत्त की तथा पृथ्वीराज रासो का एक भाग 'संगोपता नेम' नाम से कर्नल जेम्स टॉड ने प्रकाशित करवाया।
•सर्वप्रथम प्रकाशन:- 1883 ईस्वी में रॉयल एशियाटिक सोसाइटी बंगाल द्वारा
•पृथ्वीराज रासो के संस्करण:-
•वृहद् रुपांतरण:- 69 समय तथा 16306 छंद, श्यामसुंदर दास द्वारा संपादित तथा 1905 ईस्वी में नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा प्रकाशित। मूल प्रति 1585 ईस्वी में लिखित जो वर्तमान में उदयपुर संग्रहालय में सुरक्षित।
•मध्यम रुपांतरण:- 7000 छंद की अप्रकाशित प्रति जो आबोहर ( बीकानेर) में सुरक्षित। यह 17वीं सदी में लिखित।
•लघु रुपांतरण:- 19 समय, 3500 छंद की अप्रकाशित प्रति जो बीकानेर में सुरक्षित।
•लघुत्तम संस्करण:- 1300 छंद की प्रति जो डॉ.दशरथ शर्मा द्वारा संपादित तथा प्रकाशित, दशरथशर्मा मूल संस्करण इसी प्रति को मानते है।
•पृथ्वीराज रासो के कुछ छंद मुनि जिनविजय द्वारा सम्पादित 'पुरात्तन प्रबंध संग्रह'(1441 ईस्वी) में मिलते है।
•काव्य स्वरूप:- प्रबंधात्मक श्रेणी के अंतर्गत महाकाव्य ( नरोत्तम स्वामी ने इसे मुक्तक काव्य कहा)
•काव्य विभाजन:- 69 समय तथा 16306 छंद
•प्रथम समय:- आदिपर्व समय
•सबसे बड़ा समय:- कनवज्ज युद्ध (61 वां समय, रासो का मूल कथानक)
•पद्मावती विवाह समय:- 20 वां समय
•कयमास वध समय:- 57 वां समय
•नायक:- पृथ्वीराज चौहान तृतीय (धीरोदात्त नायक)
•नायिका:- संयोगिता( मुग्धा नायिका)
•सहनायिका:- पद्मावती
•अंगीरस(प्रधान रस):- श्रृंगार तथा वीररस
•प्रधान अलंकार:- अनुप्रास तथा यमक
•प्रधान छंद:- 68 प्रकार के छंद प्रयुक्त। कवित्त (रोला+उल्लास) का सर्वाधिक प्रयोग। इसके अतिरिक्त दूहा, तोमर, त्रोटक, गाहा तथा आर्या छंदों का प्रयोग। रामस्वरूप चतुर्वेदी ने चंदवरदाई को 'छप्पय सम्राट' कहा। शिवसिंह सेंगर तथा नामवर सिंह ने चंदवरदाई को छंदो का राजा कहा है।शिवसिंह सेंगर ने पृथ्वीराज रासो को छंदों का अजायबघर कहा। छप्पय को ही आधुनिक युग में कवित्त कहा गया है।
•भाषा शैली:- पिंगल शैली अर्थात् राजस्थानी तथा ब्रजभाषा का सम्मिलित प्रयोग किया गया है। डॉ.दशरथ शर्मा ने पृथ्वीराजरासो की भाषा प्राचीन राजस्थानी मानी। भाषा की अभिधेय शक्ति का प्रभावशाली वर्णन कियागया है।
•प्रमाणिकता विवाद:- तीन मत प्रचलित
1. प्रमाणित:- श्यामसुंदर दास, मोहनलाल विष्णुलाल पाण्ड्या, मिश्रबंधु, कर्नल जेम्स टॉड, जॉर्ज ग्रियर्सन, डॉ.नगेन्द्र, दशरथ शर्मा, अयोध्या प्रसाद सिंह हरिऔध, मथुराप्रसाद दीक्षित
2.अर्द्धप्रमाणित:- हजारीप्रसाद द्विवेदी, मुनि जिनविजय, सुनीतिकुमार चटर्जी, अगरचंद नाहटा
3.अप्रमाणित:- डॉ. बूलर, रामचंद्र शुक्ल, गौरीशंकर हीरानंद ओझा, मुरारिदान, श्यामलदान, मुंशी देवी प्रसाद, मोतीलाल मेनारिया। डॉ. बूलर ने सर्वप्रथम 1875 ईस्वी में जयानक कृत 'पृथ्वीराज विजय' को आधार बनाकर अप्रमाणित माना।
•पृथ्वीराज रासो को प्राप्त संज्ञाएँ:-
•शुक-शुकी संवाद- हजारीप्रसाद द्विवेदी
•महाभारत की तरह विशाल महाकाव्य, घटनाकोश- डॉ.नगेन्द्र
•भट्ट भणंत, जाली ग्रंथ- रामचंद्र शुक्ल
•विशाल वीरकाव्य-श्यामसुंदर दास
•उक्ति श्रृंखला, छंद श्रृंखला-माता प्रसाद गुप्त
•स्वाभाविक विकासशील महाकाव्य-गुलाबराय
•हिन्दी का वृहद् महाभारत- दशरथ शर्मा
•विशेष:-
•आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डॉ.नगेन्द्र, पं.हरप्रसाद शास्त्री आदि विद्वानों ने इस ग्रंथ के उत्तरार्ध भाग को चंदवरदाई के पुत्र जल्हण द्वारा पूर्ण करना बताया है। चंदवरदाई ने 59 समय तथा जल्हण ने 10 समय की रचना की।
•मोहनलाल विष्णुलाल पाण्ड्या ने पृथ्वीराज रासो की प्रमाणिकता सिद्ध करने के लिए एक नये संवत् 'आनंद संवत्' की कल्पना की, यह संवत् विक्रम संवत् से 90-91 वर्ष का अंतर रखता है।
•कथन:-
•रामचंद्र शुक्ल:- साहित्य प्रबंध के रुप में जो प्राचीन ग्रंथ उपलब्ध है, वह है पृथ्वीराज रासो।
•रामचंद्र शुक्ल:- चंदवरदाई हिन्दी के प्रथम महाकवि माने जाते है और इनका पृथ्वीराज रासो हिन्दी का प्रथम महाकाव्य है।
•मिश्रबंधु:- हिन्दी का प्रथम वास्तविक महाकवि चंदवरदाई को ही कहा जा सकता है।
•रामस्वरूप चतुर्वेदी:- हिन्दी का पहला काव्य और महाकाव्य पृथ्वीराज रासउ हिंदू मुस्लिम संघर्ष की गाथा है।
•रामस्वरूप चतुर्वेदी:- पृथ्वीराज रासउ हिन्दी की अपनी महाकाव्य परंपरा की बड़ी उपयुक्त प्रस्तावना है।...हिन्दी का चरित्र पहली बार ही बड़े मोहक रुप में भाषा और संवेदना के दोनों स्तर पर इसमें निखर कर आया है।
•बच्चन सिंह:-यह (पृथ्वीराज रासो) एक राजनीतिक महाकाव्य है,दूसरे शब्दों में राजनीति की महाकाव्यात्मक त्रासदी है।
•नामवर सिंह:- रासो मानव जीवन की विविध परिस्थितियों और भाव दशाओं का महासागर है। यही वह विशेषता है जिससे युग के सभी काव्यों में रासो को सर्वोपरि स्थान दिया गया है। निश्चय ही आपको यह उस युग की सांस्कृतिक परिस्थितियों तथा पूर्व परंपराओं का वृहद्कोश है और मध्ययुगीन भारतीय समाज का एक काव्यात्मक इतिहास है।
•हजारीप्रसाद द्विवेदी:- इसकी रचना शुक-शुकी संवाद में हुई थी।जिन सर्गों में यह शैली नहीं मिलती उन्हें प्रक्षिप्त मानना चाहिये। इससे वे अंश ही प्रक्षिप्त होते है जिनमें इतिहास विरुद्ध तथ्य है।
•हजारीप्रसाद द्विवेदी:- चंदवरदाई का यह काव्य रासक भी है,जो गेय काव्य हुआ करता था,जिसमें मृदु और उद्धत प्रयोग हुआ करते थे।...चंद ने भी अपभ्रंश की रासकों की शैली पर ही अपना रासो लिखा।
•हजारीप्रसाद द्विवेदी:- ऐसा लगता है कि रासोकार ने पृथ्वीराज को भगवत्स्वरुप बताकर कहानी में थोड़ा धार्मिकता का रंग देना चाहा था।
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