सिद्ध साहित्य
बौद्ध धर्म में दो शाखाएं है- हीनयान एवं महायान।महायान शाखा में जिन अनुयायियों ने ऐन्द्रजालिक रहस्यमयी शक्तियों को प्राप्त करने को अपना उद्देश्य बनाया, वे वज्रयानी कहलाये।वज्र का आशय शक्ति से है। वज्रयान शाखा में 84 सिद्धों का उल्लेख मिलता है, जिसमें सिद्ध सरहपा का स्थान सर्वोपरि है। अन्य सिद्धों में शबरपा,लुइपा,डोम्भिपा,कण्हपा, कुकुरीपा आदि प्रमुख है।बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा का प्रचार करने के लिए अपभ्रंश के दोहों एवं चर्यापदों के रूप में जो साहित्य रचा गया वह सिद्ध साहित्य कहलाया। साधना अवस्था में निकलीं सिद्धों की वाणी चर्यागीत कहलाती है। सिद्धों ने अपनी साधना का लक्ष्य ज्ञान को न मानकर अनुभूति को माना। तंत्र से प्रभावित होकर उन्होंने अपने समस्त ज्ञान, साधना पद्धति, हठयोग को अनुभूति के रंग में रंग दिया। उसके पीछे सिद्धों का उद्देश्य था-बौद्ध धर्म के निवृत्तिमूलक दुःखवादी रूप का निराकरण करके आनंद भावना की प्रतिष्ठा करना। आनंद को ही सिद्धों ने आध्यात्मिक गहनता माना। सिद्धों की भाषा के संदर्भ में विचार करते हुए मुनि अद्वयवज्र तथा मुनि दत्त सूरि ने इसे 'संधा' या 'संध्या' भाषा कहा, जिसका आशय कुछ स्पष्ट व कुछ अस्पष्ट से है। वस्तुतः कबीर के साहित्य में मिलने वाली उलटबासी का पूर्व रूप सिद्धों में इस संधा भाषा के प्रयोग में ही निहित है। सिद्ध साहित्य की प्रशंसा करते हुए आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी लिखते हैं कि-" जो जनता तत्कालीन नरेशों की स्वेच्छाचारिता,पराजय या पतन से त्रस्त होकर निराशावाद के गर्त में गिरी हुई थी, उसके लिए इन सिद्धों की वाणी ने संजीवनी बूटी का कार्य किया।" प्रमुख सिद्ध रचनाकारों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-
1.सरहपा- ये सरहपाद,सरोजवज्र,राहुुुलभद्र आदि कई नामों से प्रख्यात है। ये जाति से ब्राह्मण थे। राहुल सांकृत्यायन ने इनका समय 769 ईस्वी निर्धारित किया। राहुल सांकृत्यायन एवं अन्य विद्वानों ने इन्हें हिन्दी साहित्य का प्रथम कवि स्वीकृत किया है। इनके 32 ग्रंथों में 'दोहाकोश' सर्वाधिक चर्चित है। इन्हें वज्रयान शाखा में सहजयान अतः सिद्धमार्ग की स्थापना की। इन्होंने सर्वप्रथम 'चौपाई+दोहा' का प्रयोग किया। इन्होंने
पाखंड और आडम्बर का विरोध किया एवं गुरु सेवा को महत्व दिया। ये सहज भोगमार्ग से जीव को महासुख की ओर ले जातें हैं। डॉ. वी. भट्टाचार्य ने सरहपा को बांग्ला भाषा का प्रथम कवि माना। सरहपा की भाषा पर बच्चन सिंह लिखते हैं कि- "आक्रोश की भाषा का सबसे पहला प्रयास सरहपा में दिखाई पड़ता है।" सहरपा की प्रसिद्ध पंक्तियाँ-
* नाद न बिंदु न रवि न शशि मंडल।
*जह मन पवन न संचरइ, रवि शशि नाह पवेश।
* पंडित सअल सत्थ बक्खाणइ।
* घोर अंधारे चंदमणि जिमि उज्जोअ करेई।
*घर वह खज्जहि सहजे रज्जइ,किज्जइ राअ।
2.शबरपा-शबरपा का जन्म 780 ईस्वी में क्षत्रिय कुुल में हुआ। इनके गुरु सरहपा थे। शबरों सा जीवन व्यतीत करने के कारण ये शबरपा कहलाए। इन्होंने मोह माया का विरोध कर सहज जीवन पर बल दिया। 'चर्यापद' इनकी प्रसिद्ध कृृृति है, इनकी अन्य कृतियां वज्रयोगिनीसाधना एवं महामुुुद्रावज्रगीति
है। इनकी प्रसिद्ध पंक्ति-
*हेरि ये मेरि तइला बाड़ी खसमे समतुला
3.लुइपा- जन्म 773 ईस्वी में लगभग, राजा धर्मपाल के समकालीन। ये शबरपा के शिष्य रहे। डॉ. नगेन्द्र के अनुसार 84 सिद्धों में इनका स्थान सबसे ऊँचा है। इनका काव्य रहस्यात्मक भाव का है। इनकी रचना लुइपागीतिका है। इनकी प्रसिद्ध पंक्तियाँ-
*क्राआ तरूवर पंच विडाल,चंचल चीए पइलो काल।
*भाव न होइ, अभाव ण जाइ
4.डोम्भिपा- 840 ईस्वी में मगध के क्षत्रिय वंंश में जन्म। इनके गुरु विरूपा थे। इनकी कृतियां डोम्बिगीतिका, योगचर्या एवं अक्षरद्विकोपदेश है।प्रसिद्ध पंंक्ति-
*गंगा जउना माझेरे बहर नाइ।
5.कण्हपा-820 ईस्वी में कर्नाटक के ब्राह्मण वंश में जन्म। सोमपुरो बिहार इनका कर्म क्षेत्र रहा। जालंधरपा इनके गुरु थे।
इनकी प्रमुख रचनाएँ चर्याचर्यविनिश्चय एवं कण्हपागीतिका है।
इनकी प्रसिद्ध पंक्तियाँ-
*आगम वेअ पुराणे,पण्डित मान बहंति।
*हालो डोंबी! तो पुछमि सदभावे।
सदगुरू पाअ पए जाइब पुणु जिणउरा।
*एक्क ण किज्जइ मंत्र ण तंत।
*नजर बाहिरे डोंबी तोहरि कुडिया छइ।
*जिमि लोण बिलिज्जइ पाणि एहि तिमि धरणी लइ चित्त।
6.कुक्कुरिपा- इनका जन्म कपिलवस्तु में ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनकी कृतियां योगभावनोपदेश एवं चर्ययापद है। इनकी प्रसिद्ध पंक्ति-
*हांउ निवासी खमण भतारे, मोहोर विगोआ कहण न जाइ।
इन सिद्धों के अतिरिक्त जालंधरपा, विरूपा,कण्डपा आदि प्रमुख सिद्ध हुए हैं।
है। इनकी प्रसिद्ध पंक्ति-
*हेरि ये मेरि तइला बाड़ी खसमे समतुला
3.लुइपा- जन्म 773 ईस्वी में लगभग, राजा धर्मपाल के समकालीन। ये शबरपा के शिष्य रहे। डॉ. नगेन्द्र के अनुसार 84 सिद्धों में इनका स्थान सबसे ऊँचा है। इनका काव्य रहस्यात्मक भाव का है। इनकी रचना लुइपागीतिका है। इनकी प्रसिद्ध पंक्तियाँ-
*क्राआ तरूवर पंच विडाल,चंचल चीए पइलो काल।
*भाव न होइ, अभाव ण जाइ
4.डोम्भिपा- 840 ईस्वी में मगध के क्षत्रिय वंंश में जन्म। इनके गुरु विरूपा थे। इनकी कृतियां डोम्बिगीतिका, योगचर्या एवं अक्षरद्विकोपदेश है।प्रसिद्ध पंंक्ति-
*गंगा जउना माझेरे बहर नाइ।
5.कण्हपा-820 ईस्वी में कर्नाटक के ब्राह्मण वंश में जन्म। सोमपुरो बिहार इनका कर्म क्षेत्र रहा। जालंधरपा इनके गुरु थे।
इनकी प्रमुख रचनाएँ चर्याचर्यविनिश्चय एवं कण्हपागीतिका है।
इनकी प्रसिद्ध पंक्तियाँ-
*आगम वेअ पुराणे,पण्डित मान बहंति।
*हालो डोंबी! तो पुछमि सदभावे।
सदगुरू पाअ पए जाइब पुणु जिणउरा।
*एक्क ण किज्जइ मंत्र ण तंत।
*नजर बाहिरे डोंबी तोहरि कुडिया छइ।
*जिमि लोण बिलिज्जइ पाणि एहि तिमि धरणी लइ चित्त।
6.कुक्कुरिपा- इनका जन्म कपिलवस्तु में ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनकी कृतियां योगभावनोपदेश एवं चर्ययापद है। इनकी प्रसिद्ध पंक्ति-
*हांउ निवासी खमण भतारे, मोहोर विगोआ कहण न जाइ।
इन सिद्धों के अतिरिक्त जालंधरपा, विरूपा,कण्डपा आदि प्रमुख सिद्ध हुए हैं।
Sahaj aour saral bhasa me achha content ..shukriya Sir is prayas ke
ReplyDeleteliye .
Nice sir ,👌
ReplyDeleteBahut achha , AAP ek din jarur Itihas me apna bahumulya yogdan denge.
Keep it up sir
Very helpful containtent
ReplyDeleteThanks for motiv and good response
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteVery helpful, thanku sir
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी दी है।
ReplyDeleteअति लाभदायक और संक्षिप्त मे पूरी जानकारी उपलब्ध कराने के लिये धन्यवाद सर
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